Shibu Soren Death की खबर ने पूरे झारखंड और देशभर के जनजातीय समाज को गहरे शोक में डाल दिया है। 81 वर्ष की उम्र में उनका निधन केवल एक राजनीतिक नेता का अंत नहीं है, बल्कि एक ऐसे युग का समापन है जिसने झारखंड राज्य के निर्माण और आदिवासी अधिकारों की लड़ाई को नई दिशा दी।
शिबू सोरेन कौन थे?
शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके थे। उन्हें ‘दिशोम गुरु’ कहा जाता था, जिसका अर्थ है “चारों दिशाओं का गुरु”। उनका जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड के दुमका जिले में हुआ था।
Shibu Soren Death: कब और कैसे हुआ निधन?
Shibu Soren Death की पुष्टि 4 अगस्त 2025 को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में हुई। वे पिछले कई दिनों से जीवन रक्षक प्रणाली (life support system) पर थे। किडनी संबंधी बीमारी के कारण उनकी हालत लगातार बिगड़ रही थी। 19 जून से उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था।
झारखंड में तीन दिन का राजकीय शोक
उनके निधन के बाद झारखंड सरकार ने तीन दिनों का राजकीय शोक घोषित किया है। 5 अगस्त को राज्य के सभी सरकारी विद्यालय बंद रहेंगे। उनके पार्थिव शरीर को रांची लाया गया है, जहां विधानसभा भवन, JMM कार्यालय और मोराबादी स्थित उनके आवास पर अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा।
प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक ने दी श्रद्धांजलि
Shibu Soren Death पर देशभर के राजनेताओं ने गहरा शोक व्यक्त किया।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा कि शिबू सोरेन ने आदिवासी समाज के लिए असाधारण योगदान दिया।
- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें एक सच्चा जनसेवक बताया।
- लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और अन्य नेताओं ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी।
हेमंत सोरेन ने कहा – “मेरे पास अब कुछ नहीं बचा”
झारखंड के मुख्यमंत्री और उनके पुत्र हेमंत सोरेन ने कहा कि “मैंने अपना सब कुछ खो दिया है। मेरे पिता मेरे प्रेरणास्त्रोत थे, उनका जाना मेरे जीवन की सबसे बड़ी क्षति है।”
यह वक्त केवल एक बेटे के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य के लिए भी भावुकता से भरा हुआ है।
Dishom Guru: आदिवासी संघर्ष का चेहरा
शिबू सोरेन ने हमेशा आदिवासियों के हक और अधिकारों की आवाज उठाई। उन्होंने JMM की स्थापना कर यह दिखा दिया कि झारखंड के लोगों को अपनी पहचान और अपना राज्य मिलना ही चाहिए।
उनकी अगुवाई में झारखंड राज्य का गठन 15 नवंबर 2000 को हुआ। यही नहीं, कोयला घोटाले और अन्य संघर्षों में उन्होंने कई बार जेल भी झेली, लेकिन कभी हार नहीं मानी।
राजनीतिक सफर
- 1977: पहली बार लोकसभा पहुंचे
- 1980-2000: लगातार जनजातीय अधिकारों के लिए आंदोलन
- 2004-2005, 2008-2009, 2010: झारखंड के मुख्यमंत्री बने
- 2010: केंद्रीय कोयला मंत्री भी रहे
उनकी छवि एक निडर और स्पष्टवादी नेता की थी, जो हमेशा जनहित में आवाज उठाते थे।
Shibu Soren Death और जनता की प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया से लेकर गांवों की चौपाल तक, हर जगह केवल एक ही बात हो रही है – Shibu Soren Death से जो खालीपन पैदा हुआ है, उसे भरना मुश्किल है। हजारों लोग रांची में उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़े हुए हैं।
शिबू सोरेन का प्रभाव और विरासत
- झारखंड राज्य की नींव
- आदिवासी युवाओं को प्रेरणा
- सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष
- नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति का प्रयास
उनकी सोच और नीतियों ने अगली पीढ़ियों के लिए रास्ता तैयार किया है।
अंतिम विदाई का कार्यक्रम
उनका अंतिम संस्कार 5 अगस्त को उनके पैतृक गांव में पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। JMM कार्यकर्ता, नेता और आम जनता भारी संख्या में अंतिम यात्रा में शामिल होंगे।
Shibu Soren Death से देश ने एक मजबूत, जनप्रिय और जमीनी नेता को खो दिया है। उन्होंने अपने जीवन में जितनी कठिनाइयों का सामना किया, वे आज भी सभी के लिए एक प्रेरणा हैं। ‘दिशोम गुरु’ अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विचारधारा और संघर्ष का रास्ता हमेशा जीवित रहेगा।
FAQs
Q. Shibu Soren का निधन कब हुआ?
4 अगस्त 2025 को दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में हुआ।
Q. उन्हें ‘दिशोम गुरु’ क्यों कहा जाता था?
यह उपाधि उन्हें आदिवासी समाज के मार्गदर्शक और नेता के रूप में दी गई थी।
Q. Shibu Soren Death पर क्या झारखंड में छुट्टी घोषित की गई है?
हाँ, 5 अगस्त को स्कूल बंद रहेंगे और तीन दिन का राजकीय शोक घोषित है।
Q. उनका राजनीतिक करियर कब शुरू हुआ?
1970 के दशक में जनजातीय अधिकारों के लिए आंदोलन से शुरू हुआ।