अंबाह (मुरैना): चंबल अंचल की तपोभूमि ने एक दिव्य संत को खो दिया है। चंबल के तपस्वी संत Makhandas Ji Maharaj का सोमवार को जयपुर में इलाज के दौरान निधन हो गया। उनके देहावसान की खबर से अंचल में शोक की लहर है। बाबा के हजारों अनुयायी उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़े हैं।
बताया गया है कि मंगलवार, 6 मई को राजस्थान के मनीरामपुरा गांव स्थित चंबल तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। यही स्थान उनका जन्मस्थल भी है।
Makhandas Ji Maharaj ने 14 वर्षों की निराहार तपस्या ने बनाया ‘चंबल का तपस्वी’
Makhandas Ji Maharaj का जीवन तप, त्याग और साधना का अनुपम उदाहरण रहा। उन्होंने चंबल के बीहड़ों में लगातार 14 वर्षों तक बिना अन्न-जल ग्रहण किए तपस्या की थी। वे हर मौसम में बिना वस्त्र के रहते और दिन-रात रामचरितमानस का पाठ करते थे। उनकी यह कठिन साधना उन्हें सामान्य संतों से अलग बनाती थी।
Makhandas Ji Maharaj भगवान राम और महादेव के अनन्य उपासक
Makhandas Ji Maharaj को भगवान श्रीराम और शिवजी का परम भक्त माना जाता था। ‘मां चंबल के पुत्र’ और ‘महादेव बाबा का उपासक’ के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। उनकी वाणी और प्रवचन लाखों लोगों को अध्यात्म की ओर प्रेरित करते थे।
तीन राज्यों में फैला आध्यात्मिक साम्राज्य
माखनदास बाबा के तीन प्रमुख आश्रम हैं:
- मध्यप्रदेश: किसरोली धाम, अंबाह
- राजस्थान: मनीरामपुरा (जन्मस्थली और तपोभूमि)
- उत्तर प्रदेश: वृंदावन
इन आश्रमों में आज भी सैकड़ों साधु-संत तपस्या और सेवा में लगे हुए हैं।
प्रकृति और प्राणियों के प्रति विशेष प्रेम
बाबा का जीवन केवल मानवता की सेवा तक सीमित नहीं था। पशु-पक्षियों के प्रति उनके स्नेह और करुणा का उदाहरण उनके आश्रमों में आज भी देखा जा सकता है। चंबल के बीहड़ों में तपस्या के दौरान वे किसी भी जीव को भूखा नहीं छोड़ते थे। उनके आश्रमों में अब भी पशु-पक्षियों के लिए भोजन-पानी की समुचित व्यवस्था बनी हुई है।
अनुयायियों और संत समाज से श्रद्धांजलि
संत माखनदास बाबा के निधन की खबर से पूरे चंबल अंचल में शोक का माहौल है। संत समाज, राजनेता और आम श्रद्धालु उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। उनके अनुयायियों का कहना है कि –
“बाबा का जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत रहेगा। उन्होंने जो आध्यात्मिक विरासत छोड़ी है, वह सदा जीवित रहेगी।”
अंतिम संदेश
ॐ शांति।
संत माखनदास बाबा जैसे तपस्वी युगों-युगों में जन्म लेते हैं। उनका देहावसान एक युग के अंत जैसा है, लेकिन उनके विचार और साधना अमर रहेंगे।
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