कौन हैं नए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना | भारत का सर्वोच्च न्यायालय: न्यायमूर्ति संजीव खन्ना: भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश का जीवन परिचय
जस्टिस संजीव खन्ना का जीवन संघर्ष, कर्तव्य और न्याय के प्रति अटूट निष्ठा का प्रतीक है। उनका जन्म 14 मई 1960 को दिल्ली में हुआ था। न्यायिक परिवार से जुड़े संजीव खन्ना के पिता देवराज खन्ना दिल्ली हाई कोर्ट में न्यायाधीश थे, और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व प्रतिष्ठित न्यायाधीश एच.आर. खन्ना उनके चाचा थे, जिन्होंने आपातकाल के दौरान सरकार के खिलाफ निर्णय देकर अपनी न्यायप्रियता सिद्ध की थी।
प्रारंभिक शिक्षा और करियर
संजीव खन्ना ने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में शामिल होकर उन्होंने अपनी वकालत की शुरुआत की और दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। बाद में उन्होंने संवैधानिक कानून, कंपनी कानून, वाणिज्यिक कानून, पर्यावरण कानून जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अनुभव प्राप्त किया। खन्ना ने दिल्ली उच्च न्यायालय में सरकारी वकील, एमिकस क्यूरी (सहायक वकील) के रूप में भी काम किया। 2005 में उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया, और 2006 में स्थायी न्यायाधीश बने।
सुप्रीम कोर्ट में योगदान
18 जनवरी 2019 को जस्टिस संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में कई ऐतिहासिक निर्णयों में भूमिका निभाई, जिनमें अनुच्छेद 370 को निरस्त करना, चुनावी बॉन्ड योजना पर सुनवाई, और EVM सत्यापन जैसे मामले शामिल हैं। अपने सुप्रीम कोर्ट के कार्यकाल के दौरान वे कुल 456 बेंचों का हिस्सा रहे और 117 फैसले लिखे। जस्टिस खन्ना का कार्यकाल न्यायिक प्रणाली के उच्चतम आदर्शों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के सेवानिवृत्त होने के बाद, 11 नवंबर 2024 को जस्टिस खन्ना को भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई गई। इस पद पर उनका कार्यकाल 13 मई 2025 तक रहेगा। उनके पास एक न्यायिक नेता के रूप में केवल छह महीने का कार्यकाल है, लेकिन वे इस दौरान न्यायिक प्रणाली में अपनी गहरी समझ और अनुभव का लाभ उठाने का प्रयास करेंगे।
जस्टिस संजीव खन्ना का सफर न्यायिक और सामाजिक दायित्वों को एक आदर्श उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करता है। न्याय के प्रति उनके समर्पण ने उन्हें देश के सबसे ऊंचे न्यायिक पद तक पहुँचाया, और वे भारतीय न्यायपालिका में एक प्रेरणा के रूप में याद किए जाएंगे।